Monday, February 25, 2013

'कृति' और 'कीर्ती'


‎'कृति' और 'कीर्ती' शब्दों का प्रयोग करते हुए अपने भाव घटोतरी/ बढ़ोतरी में लिखिए - शर्त यही है कि दोनों शब्द एक जगह नही होने चाहिए इसमें से एक शब्द घटोतरी में और एक शब्द बढ़ोतरी में होना चाहिए

Yogesh Raj 
जिसकी है कृति,
व्योम, वसुंधरा, ब्रह्माण्ड की,
जिसने की व्यवस्था पवन पानी की,
अर्चना करूं उस जीवन-दात्री प्रकृति की,
-------------------------------------
समस्त विश्व में कीर्ति है जिस शक्ति की,
श्रद्धा अर्पित होती है जिसको विभिन्न रुपी,
हर प्राणी पर जिसकी दया-दृष्टि, 
वंदना करूं उस प्रकृति की.


भगवान सिंह जयाड़ा 
कृति,
होती है ,
मन का आइना ,
दिखाये ख्वाबों की तस्वीर ,
****************
जितना निखारो तस्वीर को ,
सबके मन भाये ,
और बढाए ,
कीर्ती,


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
कृति हम ।
उस जननी की ।
लफ्ज़ जिसे देते "माँ"।
माँ लफ्ज़ छिपी है "आह"।।
---------------------------
माँ देखो फूला नहीं समाती ।।
जब संतान कीर्ति पाती ।
प्रशंसको की ज़मात ।
माँ सौगात ।

सुनीता शर्मा 
ईश्वर की कृति हैं हम सब 
रखे सभी सबके संग समभाव 
जात पात भेद भुलाकर 
रचे नव भारत !
--------------
करें उन्नत कार्य 
जागे मानवतावाद हर दिशा 
बढ़े प्यार मैत्री के भाव 
सभी गाएँ अब भारत कीर्ति गान


किरण आर्य 
ईश्वर की कृति है हम
उसने है सृष्टि गढ़ी
रखे मान हम 
कर सत्कर्म
....................
कर सत्कर्म
कीर्ति गाये जग
बन प्रेरणा स्त्रोत तू
दीये सम जहां रौशन कर


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
कीर्ती और यश फैलेगा 
मान सम्मान मिलेगा 
करते रहो 
सत्कर्म 
--------
कृति 
भगवान की 
इंसान या सृष्टी 
सब में उसका वास



अलका गुप्ता
सत्कर्मों से !
महका दो सबको 
पुलकित हो हर मन 
हो गुंजित कीर्ति गान से 
----------------------------
कृति में जीवन भर देता 
भाव अर्पण कर देता 
तादात्म से 
कृतिकार !



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Monday, February 18, 2013

प्रश्न

शर्त : 'प्रश्न' शब्द को दोनों भावो में [ घटोतरी व ढ़ोतरी ] शामिल कीजिये 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
हर मोड़ पर, जिंदगी!!!
मैं खुद से 
पूछता रहा 
प्रश्न 
----
प्रश्न
अनेक है 
परन्तु मेरे उत्तर 
जिंदगी में उलझे है


किरण आर्य 
जिंदगी हाँ तेरी हर शह 
रुलाती कभी हंसाती है 
ढूंढते है समाधान 
अनुतरित प्रश्न 
.............
अनुतरित प्रश्न 
समाधान हो तुम्ही 
तुमसे ही है अस्तित्व 
जिंदगी के मायने तुझमे बसे 


बलदाऊ गोस्वामी 
प्रश्न सूना है, 
मन बडा दु:खी है। 
किन्तु विवेक चुप-चाप है, 
मन सोचता ऐसा क्यों होता है।। 
........................
जीन्दगी में प्रश्न की खदान है, 
लम्बा-चौडा काम फैला है। 
बात बडी अचरज है, 
प्रश्न सूना है।। 


भगवान सिंह जयाड़ा 
क्या है यह जिंदगी,
कभी सोचता हूँ ,
उठता है ,
प्रश्न ,
------
प्रश्न ,
यह मैं ,
खुद सोचता हूँ ,
क्या ख्वाब है जिंदगी ?


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
अपनी अपनी कसौटी, आप हर कोई सही।
प्रश्न के गर्भ में उत्तर कई ।
उचित लगे, लगे गलत कई ।।
उचित अनुचित प्रमाणक कई ।।।
----------------
अतीत गर्भ, निकले जब ।।
हर उत्तर, खड़े प्रश्न कई ।
इक उत्तर हिला दे सियासतें कई ।
इक प्रश्न भी बदल दे रिवायतें कई 


Yogesh Raj .
प्रश्न हों अनेक,
परन्तु उत्तर है एक,
सादा जीवन ऊंचे विचार रखो,
क्रोध त्यागो और इरादे रखो नेक,
................................................
धार्मिकता शब्द का बस एक ही अर्थ है,
मानव-सेवा का तुम व्रत ले लो,
जात-पात से तुम ऊपर उठो,
अन्य कोई प्रश्न व्यर्थ हैं. 


अंजना चौहान सिंह
जिंदगी उलझी पहेली 
कभी साथी तो कभी सहेली 
कभी भीड़ में भी हूँ मैं अकेली 
प्रश्नों सी जिंदगी मुंह बाए खड़ी
...................................
प्रश्नों सी जिंदगी मुंह बाए खड़ी
काश मैं ढूंढ पाती हर उत्तर 
आसान हो जाता जीना 
मैं हूँ निरुत्तर


प्रभा मित्तल 
प्रश्न ही, 
बने रहे तुम,
मेरे लिए सारी जिंदगी,
मैं केवल तुम्हें ढूँढती रही।
----------------------------
जीवन के बीहड़ रस्तों पर,
मौन खड़ी पूछती रही,
साथ चलोगे ?
ये प्रश्न !


अंजना चौहान सिंह .
पूछो प्रश्न 
मिल जाएगा 
हर बात का जबाब 
अब मैं चुप ना रहूंगी 
............................
अब मैं चुप ना रहूंगी 
और दर्द ना सहूँगी 
सामना करूंगी 
प्रश्न का


अलका गुप्ता 
फिर प्रश्न 
मजबूरी है मेरी 
मैं खड़ी कटघरे में 
हुआ है युगों से यही 

मेरे लिए तंग है दायरा 
कसी जाउंगी कसौटी में 
मर्यादा घेरे में 
प्रश्न से


डॉ. सरोज गुप्ता 
प्रश्न 
जब तक 
रहता है ज़िंदा 
साँसे चलती उत्तर की
.......................
उत्तर छिपा गर्भ में 
मिलेगा सब्र से 
बाहर लाएगा 
प्रश्न





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Sunday, February 3, 2013

संस्कृति - परिवर्तन

आज के शब्द 'संस्कृति' और 'परिवर्तन' --- जिनका प्रयोग एक भाव 'प्रश्न' में और एक शब्द भाव 'उत्तर' में [मुख्य शर्त- अगर घटोतरी में प्रश्न है तो उत्तर बढ़ोतरी में होना चाहिए और अगर प्रश्न बढ़ोतरी में है तो उत्तर घटोतरी में ]

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

देखता हूँ
चहुँ ओर ही
संस्कृति से होता खिलवाड़
आखिर किस ओर चले हम ?
--------
परिवर्तन संसार का नियम है
पाश्चात्य से करते होड़
भूले अपने संस्कार
अपनी संस्कृति


किरण आर्य 
बिसूरे संस्कृति साथ उसका अब ना भाय
दूजे की अपनाय अपनी खोती जाय
श्रेय ले गई आधुनिकता निगोड़ी
संस्कृति क्यों नीर बहाय ?
***********************
परिवर्तन जीवन चक्र चलाय
वक़्त नदिया सा बहता जाय
संस्कृति अपनी देकर सीख जीना सिखलाय
संस्कार सखा कहलाय जीवन को सत्कर्मी बना

सुनीता शर्मा
उन्नत संस्कारों से भरी हमारी देश की संस्कृति 
जीवन पर्यंत जो साथ देती सभी का
हमारी आधारशिला है जिससे जग में
विदेशी संस्कृति फिर क्यूँ प्रिय ?
____________________
देश की बढती दुर्गति देख
फिर से अंतर्मन के दीप जलाएं
छोड़ दें परायी विदेशी संस्कृति का मोह
अपनी मानसिकता-व्यवहार में परिवर्तन लायें देश बचाएँ


Pushpa Tripathi 
संस्कृति अपनी
क्यूँ हुई दूर ?
क्यों करते इसे पराया
इसी में छिपी, धरोहर हमारी ..
~~~~~~~~~~~~~~~
परिवर्तन जीवन का परिचालक है
चलना साथ है आवश्यक
अंधाधुंध ना दौड़
मन समझ ......


Virendra Sinha Ajnabi .
संस्कृति कैसे रह सकेगी सुरक्षित हमारी?
प्रतिदिन हो रहे प्रहार इसपे,
उछ्रंखलता उद्दंडता हैं हावी,
चारो और लाचारी.
.............................................
लाओ क्रांतिकारी परिवर्तन,
कड़ा करना होगा अनुशासन,
प्रतिबंधित करना होगा नैतिक प्रदूषण,
तभी संभव होगा संस्कृति का संरक्षण


डॉ. सरोज गुप्ता 
संस्कृति के प्रहरी
सोच उन्हें बड़ी गहरी
मांगे युवा परम्पराओं में क्रांति
क्या मिल पायेगी शान्ति,मिटेगी भ्रान्ति ?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
व्यवहारिक गुणवत्ता से बढ़े सांस्कृतिक संस्कार
परम्पराएं दिलाएं विश्वास को आधार
अंधविश्वास का मिटाओ भूत
परिवर्तन सहजे प्रीत !


भगवान सिंह जयाड़ा 
क्या संस्कृति ,
समय के साथ ,
बदलती रहती है सदा ,
क्यों बदल जाते है हम ,
**********************
शायद परिवर्तन ,
समय का दस्तूर ,
जो परिवर्तन शील सदा ,
अपने साथ बदलता सब कुछ


कुसुम शर्मा 
कहाँ है?
हमारी अपनी संस्कृति
कहाँ गए हमारे संस्कार ?
क्यों करते हम सबका त्रिस्कार?
..........................
पश्चमी देशो में जाने पर
परिवर्तन की सूली चढ़े
खो गई संस्कृति
छूटे संस्कार ।

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
जाने कब छुट गयी ।
हथेलियों से, संस्कृति की डोर ।
विदेशी जामा ओढ़े, उडे किस ओर ।
सोने की चिड़िया अब सुर काँव काँव ।
------------------
शहर की भीड़ में, बिसरे सब गाँव ।
परिवर्तन की आंधी, ले उड़ी ज़ज्बात ।
जड़ काट, खिले कलयुगी पात ।
परिवर्तन यही, संस्कृति अपनाओ ।।


********
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Friday, February 1, 2013

शोर


 शोर ' शब्द का प्रयोग करते हुए मित्रो के दोनों भाव [ घटोतरी और बढ़ोतरी]  में 


Pushpa Tripathi .

शोर न मचा ऐ काले कौए
मत कर सिर में दर्द
बोल नहीं लुभावने तेरे
तू काला कुरूप l
~~~~~~~~~~~~~~~
रोज मचाता तांडव शहर
वाहनों की अँधा धुंध शहर
आबो हवा में बिगड़ता है, शहर
शोर कोलाहल में बसता, बड़ा ये शहर


किरण आर्य 


शोर ह्रदय का क्यों व्यथित है करे

राह पाने को बेचैन भटकता सा
जैसे मृग कस्तूरी आस लिए
विकल रहे दिन रैन
.............
शोर ये शोर
यहाँ वहां चहुँ ओर
दिलो का आक्रोश राह ढूंढें
मृगतृष्णा की भटकन ही हाथ लगे


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 


इक गुमसुम सा शोर ।

दूजा शोर मचाता उदंड शोर ।
नगर, गली, शहर, चौराहों में शोर ।
दरार है शोर की, अब दीवारों में ।।
------
यूँ अंतर्मन, परेशान, सभी शोर से है ।
कहीं भ्रस्टाचार का, कहीं बलात्कार का ।
बस अब हल, क्रान्ति चाहिए ।
मुझे अब शांति चाहिए ।।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल


भीड़ में खो गया

कहता सुनता रहा
फैलता रहा
शोर
.....
शोर
यहाँ वहाँ
मन में भी
क्या सुन सके आप



Pushpa Tripathi 


'मै' प्रवृति रहता, मन के भीतर
कई उत्सुकता 'इच्छा' है नाम
करता चुपचाप फुंकार विलाप
कभी मचाता शोर .....
~~~~~~~~~~~~~~
शोर नहीं
अब आवाज़ नहीं
क्रांतिकारियों की भीड़ नहीं
सरकार तक पहुंचती बात नहीं



प्रभा मित्तल 

शोर
हर तरफ
मचा है कोलाहल,
बढ़ाता है ध्वनि प्रदूषण।
----------------------------
मन की दबी आवाजें भी
मौन प्रदूषण सी मानो
बढ़ा रही हैं
शोर।



कुसुम शर्मा 


नए साल का शोर है, नई नहीं बात।

महज नाम ही बदलते, कब बदले हालात॥
वही दिसंबर-जनवरी, वही फरवरी-मार्च
नहीं फेंकती रोशनी, बिगड़ी टार्च॥
..........................................................
शोर से भला
मेरे शहर में सन्नाटा
जहाँ कम-से-कम फुर्सत
चार पल तो मिल जाया करते।।



डॉ. सरोज गुप्ता

शोर मेरे भीतर
समुन्द्र में जैसे पानी
कभी भी ज्वालामुखी बन फूटेगा
कर देगा जल थल पानी -पानी !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मन की परतें न खोल
चुप्पी साधे छुपा चोर
क्यों सखी चितचोर
नहीं, शोर !


नूतन डिमरी गैरोला 

चोरों ने
मुखोटे गढ़े थे
शोर मचाते हुए वो
बन गये समाज के परवरदिगार|
-----------
एक निश्छल अंजान आदमी बेबुनियाद
ठहराया गया चोर जभी
चोर मचाये शोर
चोर चोर |




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