Tuesday, July 23, 2013

'भ्रम' एवं 'विनम्र'


'भ्रम' एवं 'विनम्र'
शब्दों का प्रयोग करते हुए अपने भाव घटोतरी/ बढ़ोतरी में लिखिए - शर्त यही है कि दोनों शब्द एक जगह नही होने चाहिए इसमें से एक शब्द घटोतरी में और एक शब्द बढ़ोतरी में होना चाहिए .... भाव मौलिक हो .....हर पंक्ति अपने में भाव कहने में सक्षम हो - अधूरी न लगे अलग से पढ़ने में.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
भ्रम 
उपजाए शक 
रिश्ते जाए बिखर 
विश्वास का पहुंचे ठेस 
------------------
बड़ो का हो आदर 
छोटो से प्यार 
इन्सान बनो 
विनम्र



किरण आर्य 
मन के खोखले हाय भ्रम
कर देते जीना दुश्वार
रिश्तो में दरार
टूटा मन
------------------
बन विनम्र
जीत हर मन
सत्कर्मी हो तेरे कर्म
कहलाये तभी तू सभ्य जन



अलका गुप्ता 
समझो !
तुम ठगिनी ! 
माया जंजाल हो !
आकर्षण भ्रम फांस हो !
--------------------------------
विनम्र निवेदन सौगात ये !
कन - कन है 
एक ईश्वर 
वास !



कौशल उप्रेती 
मन में 
अक्सर रहता है 
कुछ खोने का भ्रम 
और कुछ पाने की आस 
---------------------
कभी भटकता चंचल निरीह एहसास
कभी विनम्र सोभित ख्वाब 
अक्सर रहता हैं 
मन में 

कुसुम शर्मा 
ये सारा संसार 
माया का जाल है 
इस के भ्रम में फसे 
सभी इस की माया से अनजान 
********************************
विनम्र मन से कर रही हूँ प्रार्थना
हे प्रभु मुझको बचाना इस माया 
के जाल से, रखना सदा 
हाथ अपना सिर पर

सुनीता शर्मा 
भ्रम जंजाल 
अक्सर हमे भटकाए 
पैदा करता वैर वैमनस्य 
जीवन बनता जिससे फिर निर्थक 
-----------------------------
रिश्ते निखरते हैं विश्वास पर ,
विनम्र भाव बनता आधार ,
मृदुल भाषा बनाता 
सुंदर संसार 

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Friday, July 19, 2013

'रामायण' एवं 'समाज'

'रामायण' एवं 'समाज' शब्दों का प्रयोग करते हुए अपने भाव घटोतरी/ बढ़ोतरी में लिखिए - शर्त यही है कि दोनों शब्द एक जगह नही होने चाहिए इसमें से एक शब्द घटोतरी में और एक शब्द बढ़ोतरी में होना चाहिए .... भाव मौलिक हो .....हर पंक्ति अपने में भाव कहने में सक्षम हो - अधूरी न लगे अलग से पढ़ने में.


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .... 
रामायण 
हमारा आइना 
सामाजिक दृष्टी से 
आध्यात्म भाव से भी
-----
समाज आज दो राहे पर है 
इन्सान धर्म और कर्म भूला 
परिवर्तन से कर दोस्ती 
इंसानियत को भूला


सुनीता शर्मा 
सदियों से रामायण 
संस्कारों की उत्तम पाठशाला 
देती संयुक्त परिवार को महत्व 
जीवन मूल्यों का उत्कर्ष ज्ञान भंडार 
__________________________
समाज बढ़ रहा विघटन की ओर 
एकल परिवार ने पकड़ा जोर 
संस्कार विहीन अब बच्चे 
बन गए चुनौती



कुसुम शर्मा 
रामायण जहां आंखों को नम कर जाती 
वहीं महाभारत युगधर्म निभाने की प्रेरणा देती है,
गीता में ज्ञान, कर्म एवं भक्ति संगम मिलता है,
त्याग और आदर्श की पराकाष्ठा प्रस्तुत करने वाले ग्रंथ रामायण !
...................................................................
भारतीय समाज में बढ़ रहा है अत्याचार
क्यों नहीं करते सब ये विचार 
देश खड़ा पतन के कगार 
क्या यह है संस्कार


डॉ. सरोज गुप्ता 
रामायण 
उत्तम कृति 
भारत की विभूति 
विश्व में परचम फहराती !
----------------------------
तुमने मुझे क्यों समझा नहीं 
मुझे क्यों पहचाना नहीं 
तुम्हारा ही बनाया 
'समाज' हूँ !


किरण आर्य 
समाज का आईना 
हमारे आचार और विचार 
संस्कृति और संस्कार धरोहर हमारी
इनसे सुसज्जित कहलाता मेरा भारत महान
----------------------------------
रामायण केवल नहीं एक धर्म ग्रंध
नैतिक मूल्यों का है दर्पण 
अमूल्य निधि है हमारी

भावो का तर्पण 


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Monday, April 22, 2013

'परिवर्तन' व 'प्रकृति'


'परिवर्तन' व 'प्रकृति' शब्दों का प्रयोग करते हुए अपने भाव घटोतरी/ बढ़ोतरी में लिखिए - शर्त यही है कि दोनों शब्द एक जगह नही होने चाहिए इसमें से एक शब्द घटोतरी में और एक शब्द बढ़ोतरी में होना चाहिए 

किरण आर्य 
परिवर्तन नियम है संसार का
सुख दुःख अपने हाथ
बहता जीवन साथ
समझो बात
...................
प्रकृति
जीवन-दायिनी
मत करो खिलवाड़
समझो मानुष इसके जज़्बात

सुनीता शर्मा 
प्रकृति के सदा होते रंग निराले
खेलती हर समय नए खेल
विपदा में वह दिखाती
अपना असल रूप
-----------------------------
परिवर्तन हरदम
करे हर समाज
उन्नति हो या पतन
देशवासी पर पड़ता इसका प्रभाव !


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .
परिवर्तन 
किसमे लाऊं
सोच रहा हूँ
ये आईना बदल दूं
-----------------
प्रकृति से प्रेम जरुरी है
खिलवाड़ इससे करना नही
भूख और प्यास
बुझाती ये


अलका गुप्ता 
निहारता मन
रूप प्रकृति का
होकर विह्वल मगन हैं
सुन्दर विलक्षण मनोरम मुग्ध क्षन
------------------------
पल-पल परिवर्तन हैं यहाँ
रूप रंग क्षन ये
नश्वर है सब
निश्चित यहाँ


प्रभा मित्तल 
परिवर्तन चलता रहा
जमाना भी बदलता रहा
नहीं हुआ विस्मृत वो बचपन ,
वो घर जो छूटा जमाना पुराना।
--------------------------------------
प्रकृति तो ईश्वर की विलक्षण देन है
इसकी हिफ़ाजत न कर सके हम
इंसान का कहर इस पर
हर रोज बरसता रहा।



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Monday, February 25, 2013

'कृति' और 'कीर्ती'


‎'कृति' और 'कीर्ती' शब्दों का प्रयोग करते हुए अपने भाव घटोतरी/ बढ़ोतरी में लिखिए - शर्त यही है कि दोनों शब्द एक जगह नही होने चाहिए इसमें से एक शब्द घटोतरी में और एक शब्द बढ़ोतरी में होना चाहिए

Yogesh Raj 
जिसकी है कृति,
व्योम, वसुंधरा, ब्रह्माण्ड की,
जिसने की व्यवस्था पवन पानी की,
अर्चना करूं उस जीवन-दात्री प्रकृति की,
-------------------------------------
समस्त विश्व में कीर्ति है जिस शक्ति की,
श्रद्धा अर्पित होती है जिसको विभिन्न रुपी,
हर प्राणी पर जिसकी दया-दृष्टि, 
वंदना करूं उस प्रकृति की.


भगवान सिंह जयाड़ा 
कृति,
होती है ,
मन का आइना ,
दिखाये ख्वाबों की तस्वीर ,
****************
जितना निखारो तस्वीर को ,
सबके मन भाये ,
और बढाए ,
कीर्ती,


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
कृति हम ।
उस जननी की ।
लफ्ज़ जिसे देते "माँ"।
माँ लफ्ज़ छिपी है "आह"।।
---------------------------
माँ देखो फूला नहीं समाती ।।
जब संतान कीर्ति पाती ।
प्रशंसको की ज़मात ।
माँ सौगात ।

सुनीता शर्मा 
ईश्वर की कृति हैं हम सब 
रखे सभी सबके संग समभाव 
जात पात भेद भुलाकर 
रचे नव भारत !
--------------
करें उन्नत कार्य 
जागे मानवतावाद हर दिशा 
बढ़े प्यार मैत्री के भाव 
सभी गाएँ अब भारत कीर्ति गान


किरण आर्य 
ईश्वर की कृति है हम
उसने है सृष्टि गढ़ी
रखे मान हम 
कर सत्कर्म
....................
कर सत्कर्म
कीर्ति गाये जग
बन प्रेरणा स्त्रोत तू
दीये सम जहां रौशन कर


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
कीर्ती और यश फैलेगा 
मान सम्मान मिलेगा 
करते रहो 
सत्कर्म 
--------
कृति 
भगवान की 
इंसान या सृष्टी 
सब में उसका वास



अलका गुप्ता
सत्कर्मों से !
महका दो सबको 
पुलकित हो हर मन 
हो गुंजित कीर्ति गान से 
----------------------------
कृति में जीवन भर देता 
भाव अर्पण कर देता 
तादात्म से 
कृतिकार !



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Monday, February 18, 2013

प्रश्न

शर्त : 'प्रश्न' शब्द को दोनों भावो में [ घटोतरी व ढ़ोतरी ] शामिल कीजिये 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
हर मोड़ पर, जिंदगी!!!
मैं खुद से 
पूछता रहा 
प्रश्न 
----
प्रश्न
अनेक है 
परन्तु मेरे उत्तर 
जिंदगी में उलझे है


किरण आर्य 
जिंदगी हाँ तेरी हर शह 
रुलाती कभी हंसाती है 
ढूंढते है समाधान 
अनुतरित प्रश्न 
.............
अनुतरित प्रश्न 
समाधान हो तुम्ही 
तुमसे ही है अस्तित्व 
जिंदगी के मायने तुझमे बसे 


बलदाऊ गोस्वामी 
प्रश्न सूना है, 
मन बडा दु:खी है। 
किन्तु विवेक चुप-चाप है, 
मन सोचता ऐसा क्यों होता है।। 
........................
जीन्दगी में प्रश्न की खदान है, 
लम्बा-चौडा काम फैला है। 
बात बडी अचरज है, 
प्रश्न सूना है।। 


भगवान सिंह जयाड़ा 
क्या है यह जिंदगी,
कभी सोचता हूँ ,
उठता है ,
प्रश्न ,
------
प्रश्न ,
यह मैं ,
खुद सोचता हूँ ,
क्या ख्वाब है जिंदगी ?


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
अपनी अपनी कसौटी, आप हर कोई सही।
प्रश्न के गर्भ में उत्तर कई ।
उचित लगे, लगे गलत कई ।।
उचित अनुचित प्रमाणक कई ।।।
----------------
अतीत गर्भ, निकले जब ।।
हर उत्तर, खड़े प्रश्न कई ।
इक उत्तर हिला दे सियासतें कई ।
इक प्रश्न भी बदल दे रिवायतें कई 


Yogesh Raj .
प्रश्न हों अनेक,
परन्तु उत्तर है एक,
सादा जीवन ऊंचे विचार रखो,
क्रोध त्यागो और इरादे रखो नेक,
................................................
धार्मिकता शब्द का बस एक ही अर्थ है,
मानव-सेवा का तुम व्रत ले लो,
जात-पात से तुम ऊपर उठो,
अन्य कोई प्रश्न व्यर्थ हैं. 


अंजना चौहान सिंह
जिंदगी उलझी पहेली 
कभी साथी तो कभी सहेली 
कभी भीड़ में भी हूँ मैं अकेली 
प्रश्नों सी जिंदगी मुंह बाए खड़ी
...................................
प्रश्नों सी जिंदगी मुंह बाए खड़ी
काश मैं ढूंढ पाती हर उत्तर 
आसान हो जाता जीना 
मैं हूँ निरुत्तर


प्रभा मित्तल 
प्रश्न ही, 
बने रहे तुम,
मेरे लिए सारी जिंदगी,
मैं केवल तुम्हें ढूँढती रही।
----------------------------
जीवन के बीहड़ रस्तों पर,
मौन खड़ी पूछती रही,
साथ चलोगे ?
ये प्रश्न !


अंजना चौहान सिंह .
पूछो प्रश्न 
मिल जाएगा 
हर बात का जबाब 
अब मैं चुप ना रहूंगी 
............................
अब मैं चुप ना रहूंगी 
और दर्द ना सहूँगी 
सामना करूंगी 
प्रश्न का


अलका गुप्ता 
फिर प्रश्न 
मजबूरी है मेरी 
मैं खड़ी कटघरे में 
हुआ है युगों से यही 

मेरे लिए तंग है दायरा 
कसी जाउंगी कसौटी में 
मर्यादा घेरे में 
प्रश्न से


डॉ. सरोज गुप्ता 
प्रश्न 
जब तक 
रहता है ज़िंदा 
साँसे चलती उत्तर की
.......................
उत्तर छिपा गर्भ में 
मिलेगा सब्र से 
बाहर लाएगा 
प्रश्न





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Sunday, February 3, 2013

संस्कृति - परिवर्तन

आज के शब्द 'संस्कृति' और 'परिवर्तन' --- जिनका प्रयोग एक भाव 'प्रश्न' में और एक शब्द भाव 'उत्तर' में [मुख्य शर्त- अगर घटोतरी में प्रश्न है तो उत्तर बढ़ोतरी में होना चाहिए और अगर प्रश्न बढ़ोतरी में है तो उत्तर घटोतरी में ]

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

देखता हूँ
चहुँ ओर ही
संस्कृति से होता खिलवाड़
आखिर किस ओर चले हम ?
--------
परिवर्तन संसार का नियम है
पाश्चात्य से करते होड़
भूले अपने संस्कार
अपनी संस्कृति


किरण आर्य 
बिसूरे संस्कृति साथ उसका अब ना भाय
दूजे की अपनाय अपनी खोती जाय
श्रेय ले गई आधुनिकता निगोड़ी
संस्कृति क्यों नीर बहाय ?
***********************
परिवर्तन जीवन चक्र चलाय
वक़्त नदिया सा बहता जाय
संस्कृति अपनी देकर सीख जीना सिखलाय
संस्कार सखा कहलाय जीवन को सत्कर्मी बना

सुनीता शर्मा
उन्नत संस्कारों से भरी हमारी देश की संस्कृति 
जीवन पर्यंत जो साथ देती सभी का
हमारी आधारशिला है जिससे जग में
विदेशी संस्कृति फिर क्यूँ प्रिय ?
____________________
देश की बढती दुर्गति देख
फिर से अंतर्मन के दीप जलाएं
छोड़ दें परायी विदेशी संस्कृति का मोह
अपनी मानसिकता-व्यवहार में परिवर्तन लायें देश बचाएँ


Pushpa Tripathi 
संस्कृति अपनी
क्यूँ हुई दूर ?
क्यों करते इसे पराया
इसी में छिपी, धरोहर हमारी ..
~~~~~~~~~~~~~~~
परिवर्तन जीवन का परिचालक है
चलना साथ है आवश्यक
अंधाधुंध ना दौड़
मन समझ ......


Virendra Sinha Ajnabi .
संस्कृति कैसे रह सकेगी सुरक्षित हमारी?
प्रतिदिन हो रहे प्रहार इसपे,
उछ्रंखलता उद्दंडता हैं हावी,
चारो और लाचारी.
.............................................
लाओ क्रांतिकारी परिवर्तन,
कड़ा करना होगा अनुशासन,
प्रतिबंधित करना होगा नैतिक प्रदूषण,
तभी संभव होगा संस्कृति का संरक्षण


डॉ. सरोज गुप्ता 
संस्कृति के प्रहरी
सोच उन्हें बड़ी गहरी
मांगे युवा परम्पराओं में क्रांति
क्या मिल पायेगी शान्ति,मिटेगी भ्रान्ति ?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
व्यवहारिक गुणवत्ता से बढ़े सांस्कृतिक संस्कार
परम्पराएं दिलाएं विश्वास को आधार
अंधविश्वास का मिटाओ भूत
परिवर्तन सहजे प्रीत !


भगवान सिंह जयाड़ा 
क्या संस्कृति ,
समय के साथ ,
बदलती रहती है सदा ,
क्यों बदल जाते है हम ,
**********************
शायद परिवर्तन ,
समय का दस्तूर ,
जो परिवर्तन शील सदा ,
अपने साथ बदलता सब कुछ


कुसुम शर्मा 
कहाँ है?
हमारी अपनी संस्कृति
कहाँ गए हमारे संस्कार ?
क्यों करते हम सबका त्रिस्कार?
..........................
पश्चमी देशो में जाने पर
परिवर्तन की सूली चढ़े
खो गई संस्कृति
छूटे संस्कार ।

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
जाने कब छुट गयी ।
हथेलियों से, संस्कृति की डोर ।
विदेशी जामा ओढ़े, उडे किस ओर ।
सोने की चिड़िया अब सुर काँव काँव ।
------------------
शहर की भीड़ में, बिसरे सब गाँव ।
परिवर्तन की आंधी, ले उड़ी ज़ज्बात ।
जड़ काट, खिले कलयुगी पात ।
परिवर्तन यही, संस्कृति अपनाओ ।।


********
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Friday, February 1, 2013

शोर


 शोर ' शब्द का प्रयोग करते हुए मित्रो के दोनों भाव [ घटोतरी और बढ़ोतरी]  में 


Pushpa Tripathi .

शोर न मचा ऐ काले कौए
मत कर सिर में दर्द
बोल नहीं लुभावने तेरे
तू काला कुरूप l
~~~~~~~~~~~~~~~
रोज मचाता तांडव शहर
वाहनों की अँधा धुंध शहर
आबो हवा में बिगड़ता है, शहर
शोर कोलाहल में बसता, बड़ा ये शहर


किरण आर्य 


शोर ह्रदय का क्यों व्यथित है करे

राह पाने को बेचैन भटकता सा
जैसे मृग कस्तूरी आस लिए
विकल रहे दिन रैन
.............
शोर ये शोर
यहाँ वहां चहुँ ओर
दिलो का आक्रोश राह ढूंढें
मृगतृष्णा की भटकन ही हाथ लगे


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 


इक गुमसुम सा शोर ।

दूजा शोर मचाता उदंड शोर ।
नगर, गली, शहर, चौराहों में शोर ।
दरार है शोर की, अब दीवारों में ।।
------
यूँ अंतर्मन, परेशान, सभी शोर से है ।
कहीं भ्रस्टाचार का, कहीं बलात्कार का ।
बस अब हल, क्रान्ति चाहिए ।
मुझे अब शांति चाहिए ।।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल


भीड़ में खो गया

कहता सुनता रहा
फैलता रहा
शोर
.....
शोर
यहाँ वहाँ
मन में भी
क्या सुन सके आप



Pushpa Tripathi 


'मै' प्रवृति रहता, मन के भीतर
कई उत्सुकता 'इच्छा' है नाम
करता चुपचाप फुंकार विलाप
कभी मचाता शोर .....
~~~~~~~~~~~~~~
शोर नहीं
अब आवाज़ नहीं
क्रांतिकारियों की भीड़ नहीं
सरकार तक पहुंचती बात नहीं



प्रभा मित्तल 

शोर
हर तरफ
मचा है कोलाहल,
बढ़ाता है ध्वनि प्रदूषण।
----------------------------
मन की दबी आवाजें भी
मौन प्रदूषण सी मानो
बढ़ा रही हैं
शोर।



कुसुम शर्मा 


नए साल का शोर है, नई नहीं बात।

महज नाम ही बदलते, कब बदले हालात॥
वही दिसंबर-जनवरी, वही फरवरी-मार्च
नहीं फेंकती रोशनी, बिगड़ी टार्च॥
..........................................................
शोर से भला
मेरे शहर में सन्नाटा
जहाँ कम-से-कम फुर्सत
चार पल तो मिल जाया करते।।



डॉ. सरोज गुप्ता

शोर मेरे भीतर
समुन्द्र में जैसे पानी
कभी भी ज्वालामुखी बन फूटेगा
कर देगा जल थल पानी -पानी !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मन की परतें न खोल
चुप्पी साधे छुपा चोर
क्यों सखी चितचोर
नहीं, शोर !


नूतन डिमरी गैरोला 

चोरों ने
मुखोटे गढ़े थे
शोर मचाते हुए वो
बन गये समाज के परवरदिगार|
-----------
एक निश्छल अंजान आदमी बेबुनियाद
ठहराया गया चोर जभी
चोर मचाये शोर
चोर चोर |




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Wednesday, January 30, 2013

अर्पण

( अर्पण शब्द का प्रयोग करते हुए मित्रो/सदस्यों के भाव घटोतरी बढ़ोतरी में )



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

तेरा तुझको ही करता अर्पण
फिर भी मांगता तुझसे
लेन देन करता
मतलबी इंसान
---------------
आओ जाने
समर्पण हो कैसा
प्रेम में त्याग जैसा
रण भूमि में शहीद जैसा

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 


ये माँ का जीवन ।
समग्र जीवन संतान को अर्पण ।
अपनी ही छवि देखे उनमे वो ।
उसकी संतान ही, हो उसका ज्यूँ दर्पण ।।
-------------------
दुर्भाग्य ये कैसा, मिटा दर्पण माँ का ।
फ़िल्मी किरदार दीवारों पर सजा रहे ।
माँ मेरा जीवन अर्पण तुझे।
मैं माँ का जीवन ।।


भगवान सिंह जयाड़ा 

अर्पण क्या करू प्रभु तुमको
तुम्हारे लायक कुछ नहीं
ध्यान तुम्हारा नित
करता हूँ
****************
अर्पण तुमको
यह भक्ति मेरी
दया सदा बनाए रखना
बिचलित ना पथ से करना


किरण आर्य 

अर्पण ये तन मन चरणों में तेरे
हे मनमोहना ईश् तुम्ही हो मेरे
तुझ बिन अधूरे साँझ सवेरे
तुम्ही सखा बंधू मेरे
...................
मुस्काते मनमोहना तुम्ही
अंखियों में आन बसे
अहसासों से सजी रूह तोरे
अर्पण हर भाव हृदय का मोरे

सुनीता शर्मा 


मन से हर भाव किया अर्पण
पूर्ण न हो पाया स्वप्न
अधूरा रहा शायद समर्पण
श्री साईं मेरे
-------------
सुन प्यारी धरती माँ
तेरे वात्सल्य पर समर्पित हम
अत्याचारी चिन्तन न बढ़ जाएँ अब
जीवन अर्पण कर देंगे तेरी सुरक्षा में .!....



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Monday, January 28, 2013

"त्याग"


‎'त्याग' शब्द का प्रयोग करते हुए दोनों भाव [ घटोतरी और बढ़ोतरी ] 


डॉ. सरोज गुप्ता 

त्याग तेरा क्या लौटा पायेगी सरकार
पद्मश्री पद्मविभूषण जैसे तमगों से
मोल हेमराज शीश का
तिरंगा झंडा महान !
---------------
जन्मा भारत -रत्न
रखते तिजौरी में सयत्न
जाग गया जिससे भारत भाग
ऐसे रत्न का तूने किया त्याग !



Pushpa Tripathi 


त्याग की मूरत साक्षात स्वरूपा
धरणी माता सुख दायनी
हरित वेश में
तेजस्विता प्रदान
~~~~~~~~~
परोपकार सेवा
सत्कर्म है धर्म
करता चल निःस्वार्थ भाव
त्याग का तू ले वरदान




किरण आर्य 


जगत मोहमाया में क्यों उलझे मन
मिथ्या भ्रम सब रिश्ते नाते
सच्ची लौ रोशन कर
त्याग मोह चोला
.................
मन मीरा समान
खोकर सर्वस्व हरी मिले
सिर्फ पाना नहीं है औचित्य
प्रेम त्याग विश्वास भक्ति का नाम




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 


त्याग कहते है जिसे सभी
उसने स्वार्थ नही होता
केवल होता बलिदान
इच्छाओ का
-----------
मानो न मानो
रिश्तो में प्रेम का
और प्रेम में त्याग का
हमेशा ही विशिष्ट स्थान होता है


************

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Saturday, January 26, 2013

भारत


("भारत" शब्द का प्रयोग करते हुए दोनों भाव [ घटोतरी व् बढ़ोतरी ] में लिखिए ---- हां पंक्ति तो चार ही)

गिरीश जोशी

मेरा भारत देश
तिरंगा इसकी शान है
सहेज हुए है अनेकता, विविधता
और उसपे एकता जो इसकी पहचान है
-------------------- 
मेरा सौभाग्य कि ये देश है मेरा
इस भूमि में हुआ जन्म मेरा
यही तमन्ना कि करूं सेवा
ताउम्र अपने भारत की


किरण आर्य 

हाँ कमजोरियां लाखो सही 
फिर भी महान 
शान हमारी 
भारत 
-----
भारत 
मेरा देश 
प्रेरणा है हमारी 
संस्कृति संस्कारों से सुसज्जित 


प्रभा मित्तल 

भारत 
देश न्यारा
प्राणों से प्यारा
अमर रहे गणतंत्र हमारा 
-----------------------
शहीदों की कर्मस्थली यह
देवों की जन्मभूमि
प्रणम्य है 
भारत !


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

मेरा भारत 
विश्व गुरु कहलाता 
शान से लहराता तिरंगा
विश्व भर में नाम हमारा 
------- 
यहाँ है देवी देवताओ का वास 
गुरु का करते सब सम्मान 
अतिथि को देते मान 
मेरा भारत महान

Mahendra Singh Rana 

भारत का गणतंत्र है महान
कहते है सब कद्रदान
इसमे पलते बेईमान
गणतंत्र पहलवान
............... ......
आखिर
कब तक
भारत का गणतंत्र
विश्व मेँ परचम लहरायेगा?


भगवान सिंह जयाड़ा 

जन जन का यह नारा ,
भारत प्यार देश हमारा ,
इस की आन ,
हमारी शान ,
***********
हमारी जान ,
हमारी आन ,बान ,
हमारा भारत देश महान ,
कभी न घटे इसकी शान ,




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Friday, January 25, 2013

प्रार्थना - बढ़ोतरी/घटोतरी भाव में

(आज 'प्रार्थना' शब्द - बढ़ोतरी/घटोतरी भाव में मित्रो द्वारा )



नूतन डिमरी गैरोला 

प्रथम
हो प्रार्थना
स्वागत हो फिर
धन्य जान, करूं गुणगान
-----------------------
पैर पखारूँ अश्रुजल से
चख बेर खिलाऊं
अतिथि बनो
राम|


सुनीता शर्मा 

प्रार्थना होती सदा
सुंदर मनोभावों की लड़ी
ईश्वरीय अनुभूतियों को संवारती रहती
बनती उन्नत जीवन की श्रेष्ठतम परिधि
------------------------------------
आयें निश्चित शब्दों को संग्रह करें
भावों के संग अर्पित करें
सुंदर लयबद्ध अलंकर्ण करके
अब लिखें प्रार्थना

Yogesh Raj 

प्रबल इच्छा मेरी,
हार्दिक यह भावना मेरी,
मानव-सेवा में व्यतीत करूं,
संपूर्ण जीवन मै, यही प्रार्थना मेरी.
............................................
प्रार्थना करूं, जाति-धर्म से ऊपर उठकर,
परस्पर सौहार्द को मै अपना कर,
प्रस्तुत करूं आदर्श उदहारण मै,
जीवन में होऊं अग्रसर.


प्रभा मित्तल 

प्रार्थना है
ईश्वर से यही
सन्मति देना मुझे सदा
पुरुषार्थ करते बीते जीवन मेरा
-----------------------------
कोई तो है अदृश्य शक्ति
जो चलाती है ब्रह्माण्ड
वही ईश्वर है
प्रार्थना योग्य।


भगवान सिंह जयाड़ा 

यह प्रार्थना ,
तुम से भगवान ,
सदबुद्धि दे हम को ,
करो सर्व जगत का कल्याण ,
***************************
स्वीकारो प्रार्थना हे दया निधान ,
धरुं नित तुम्हारा ध्यान ,
तुम्हारी लीला महान ;
करुणा निधान.


डॉ. सरोज गुप्ता 

प्रार्थना
करती थी
रोज सुबह मैं
जब छोटी बच्ची थी !
-----------------------
मांगूं यह भीख तुमसे
दे दो वरदान
आजीवन करूँ
प्रार्थना !

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

मन में श्रद्धा रख
कर्म करता चल
साथ में
प्रार्थना
------
प्रार्थना
रोज करूँ
मांगू केवल इतना
सबका कल्याण हो प्रभु


गिरीश जोशी

बस इतनी सी है कामना
मेरा हाथ प्रभु थामना
कोई स्वार्थ ना
यही प्रार्थना
----------
मेरी प्रार्थना
सुन लो प्रभु
तुममें मन लग जाय
फिर चाहे छूट जग जाय


Pushpa Tripathi 

प्रार्थना मेरी
सुनो प्रभु मोरी
सब जीव, सुख पावै
रहे सत्कर्म, शुभ मंगल काजा .....
~~~~~~~~~~~~~~~
आशीष तुम्हार, सदा बनी रहे हम पर
बरसे कृपा, नित अनुज हम पर
दर्शन अभिलाषी, मन है मेरा
प्रार्थना हमरी, सुनो गिरधारी

किरण आर्य 

सकल भाव मन के अर्पित
चरणों में ईश् तुम्हारे
रहे सभी सुखी
प्रार्थना यहीं
----------
प्रार्थना यहीं
करे ह्रदय मोरा
जीवन सार्थकता सत्कर्म संग
मार्गदर्शित करो प्रतिपल राह मेरी



संगीता संजय डबराल 

हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े,
मांगें सबकी,खैर, ख्वाहिशे,
कर स्वीकार दाता
मेरी प्रार्थना
=========================
सच्चा प्रयास,
कर्मकांड से परे,
ईश्वर से सीधा सवांद,
प्रार्थना है अंतरात्मा की चेतना


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 

मैं नारी हूँ,
यही प्रार्थना करती हूँ ।
ऊँची उड़ान , हर बिटिया को .
अपने दामन, अनगिनत पंख रखती हूँ ।।
-------------
प्रार्थना में, नन्ही बिटिया मांगती हूँ ।।
ममता की मोरी, चुनर कोरी ।।
बिन बिटिया, अम्मा मोरी ।।
मैं जननी हूँ ।


बलदाऊ गोस्वामी 

प्रार्थना करुँ मै,
करुँ मै सुमिरन नाम।
तु है पालक हम सेवक,
सुन लो ईश्वर तु दया निधान।।
....................
उस शासवत ईश्वर का गुणगान करुँ,
जो जग में पालन हार।
हे निरंकारी तु ईश्वर,
प्रार्थना करुँ तेरी।।



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Wednesday, January 23, 2013

"भगवान"

इस पोस्ट के लिए जो शर्त थी वह इस प्रकार थी 
‎"भगवान" शब्द को अपने भावो [घटोतरी और बढ़ोतरी ] में चार पंक्तियों में प्रस्तुत करना था 
घटोतरी की पहली पंक्ति में और बढ़ोतरी की अंतिम पंक्ति में इस शब्द का प्रयोग होना अनिवार्य था  

संगीता संजय डबराल 

दुर्गुणों को दूर कीजिये भगवान्,
सद्गुणों का दीजिये वरदान,
शरणागत,लीजिये शरण,
पालनहार,करुणानिधान!
===================
हे द्यानिधान,
हम अज्ञान नादान,
तेरी रहमत से अनजान,
करो कृपा"भगवान्"हो कल्याण!


गिरीश जोशी
.
अरे नादान
क्यों है परेशान
कुछ करने की ठान
बाकी संभालने को है भगवान
-----------------------
भगावान नहीं है महज एक नाम
वो तो है एक अहसास
हर पल तेरे पास
तू क्यों उदास?


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

भगवान मुझसे तू क्यों है रूठा
तुझ पर विश्वास मेरा टूटा
कर कुछ अब चमत्कार
मैं करूँ नमस्कार
----------------
मेरा विश्वास
हर पल बनाता
तू मुझको शक्ति देता
करूँ तेरा गुणगान हे भगवान

डॉ. सरोज गुप्ता 

भगवान
मेरे प्रतिबिम्ब
मेरे मार्गदर्शक हो
तुम्हें मेरा सब समर्पित !
---------------
मैं तुममें ही हूँ एकाकार
तुम मुझसे अछूते कैसे
जान पाऊंगी उत्तर
हे भगवान !


किरण आर्य 

भगवान मोरे कृपा दृष्टि तोरी
प्राणों में जीवन संचार
जीवन संवारो मोरा
नाथ मेरे
---------
दया सागर
कष्ट निवारक सबके
नैया मोरी भंवर फंसी
हे भगवान मोरे लगाओ पार



Yogesh Raj

भगवान, मै जब होता हूँ परेशान,
कर लेता हूँ ये ध्यान,
मुझसे ज्यादा दुखी हैं,
लाखों करोड़ों इंसान,
---------------------
मुझे दो ज्ञान,
जीवन सुखी बनाने को,
फूल चढाने मंदिर जाऊं तुम्हारे,
अथवा दान पुन्य सेवा करू, भगवान.



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Monday, January 21, 2013

आस्था



 ( 'आस्था' शब्द के साथ घटोतरी/बढ़ोतरी में मित्रो के भाव चार पंक्ति में )

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  

मैंने जीवन से चाहा बहुत 
खोया पाया बहुत कुछ 
बस कायम रही 
मेरी आस्था 
------------
मेरी आस्था 
मेरा पूर्ण विश्वास 
मेरा जन्म उसके लिए 
मेरा सर्वस्व उसके आधीन है


संगीता संजय डबराल 

अमावस की स्याह रात और, 
आस्था के असंख्य दीप,
रौशन करते सदा,
संस्कारों को,
=============
आस्था के दीप 
और श्रधा की बाती
जीवन के व्याप्त अँधेरे को,
पल पल रौशनी से भर जाती


बालकृष्ण डी ध्यानी 

आस्था है 
तन मन की 
श्रद्धा उस मन की 
धारणा है भगवा रंग की 
**********************
प्रतीति है उस दोषसिद्धि की 
मत उस भक्ती की 
ईमान वो प्रत्यय 
है आस्था


किरण आर्य 

आस्था जो है मन बसी 
आत्मचिंतन से सदा वो फूली फली 
संस्कारों एवं संस्कृति के रंगों से सजी 
ईश् से कराये साक्षात्कार सकारात्मक भावो में हंसी 
............................................
नास्तिक को भी आस्तिक है बना जाती 
लौकिक से अलौकिक की पहचान कराती 
ध्यान मनन से बल पाती 
आस्था ईश्वर का रूप 


भगवान सिंह जयाड़ा 

आस्था है,
तो भगवान हैं, 
आस्था से गुरु ज्ञान , 
बिन आस्था सब जन अज्ञान ,
*******************
प्रभु में आस्था नित राखिये ,
सुमिरन करो नित ध्यान .
दूर होय अज्ञान ,
उपजे ज्ञान

आशीष नैथाऩी 'सलिल' 

पुष्प, जल
चढ़ाकर मिलती है
शान्ति अपार मन को
प्रभु ! यही है 'आस्था' मेरी ।।
----------------
'आस्था' दम घुटके मर गयी,
जब देखा सीढ़ियों पर
बिलखता हुआ बच्चा
मन्दिर में ।।


प्रभा मित्तल 

आस्था तो सबकी पूँजी है।
यह तो विश्वास है,
अदृश्य शक्ति है,
अमर है।
--------------
आस्था है,
जीवन का आधार।
मेरे लिए पुरुषार्थ में,
यही भक्ति है शक्ति भी।


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Sunday, January 20, 2013

जिंदगी

( 'जिंदगी' शब्द का प्रयोग करते हुए 'बढ़ोतरी' व् 'घटोतरी'  रूप में  सदस्यों के भाव  समूह सीढी -भावो की में )


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
जिंदगी 
एक सत्य 
फिर भी प्रश्न 
कैसे इसे जिया जाए 
-------------------
मैं उत्तर हर प्रश्न का 
मैं एक आस हूँ 
सब मुझे कोसते
कहते जिंदगी

Mahendra Singh Rana 

क्या
ए जिन्दगी
तुझसे मिल के
ये दिन देखना था?
..........................
ढूढ़ी उसमे जब अपनी जिन्दगी
दगा वो मुझे मेरा
यार बार-बार
दे गया।


सुनीता शर्मा 

जिन्दगी 
अदभुत नदी 
निरंतरता से बहती 
बनके सुख दुःख धारा 
_________________

दुखो के अपार समुंद्र में 
खुशियों के मोती छिपे 
उलझन हो कितने 
सुलझाती जिन्दगी 

प्रभा मित्तल 

जिन्दगी
आड़ी तिरछी
पगडण्डी से होकर
यौं ही गुज़रती रही।
......................
हार नहीं मानी कभी
मैंने हँसकर गुज़ारी 
साँवली सलोनी
जिन्दगी।

संगीता संजय डबराल 

जिंदगी
नित्य संघर्षरत,
तलाश ख्वाहिशों की 
भटकते दर-बदर हम,
===================
सकून कही हमें मिला नहीं, 
ढूढ़ते ही रह गये,
तलाश जारी है 
अभी जिंदगी

Pushpa Tripathi 

जिंदगी 
एक शब्द 
एक छोर तक 
भावार्थ रूप अर्थ समझती 
~*~*~*~*~*~*~*~*~
जिंदगी है, एक भिनसार उजाला 
घटता दोपहर, शाम अँधेरा 
घूमता समय चक्र 
निरंतर सदा .

आशीष नैथाऩी 'सलिल' 

जिन्दगी,
रह गयी
मोहताज साँसों की
कब आये, कब नहीं ।
-------------------
तेरी सोहबत ने जिन्दगी,
कैसा किया असर
भुला बैठे
उन्हें ।

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 

ज़िन्दगी किस गली बसर हो तुम ।
रोज पता खोजते हैं हम ।
न भीड़, न तन्हाई ।
क्यूँ नाराजी जताई ?
-----------------
ज़िन्दगी, चाहा तुझे ।
बेजान हूँ, दूरियां बनायीं ।
साँसों को मेरी, ज़रुरत तेरी।
देख, हुजूम खड़ा मय्यत को मेरी ।

श्री प्रकाश डिमरी

तू कहाँ खोयी 
जागी है या सोयी 
पत्थरों के अजनबी शहर में 
सहमी सहमी सांस लेती है जिंदगी 
--------- 
अबोध बचपन जैसी अनजान सी 
करती कभी हैरान सी 
कभी खिलखिलाती मुस्कुराती 
रुलाती जिंदगी

[शुक्रिया मित्रो ]
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Saturday, January 19, 2013

" सीढ़ी - भावो की " के प्रति कुछ भाव



~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल~
आओ बढाकर हाथ 
चलो हम साथ चले 
शब्दों के बना कर घर 
भावो का एक नया शहर बसाएं
15 January at 19:22 (बढ़ोतरी)

**** ऊपर लिखे हुए "बढ़ोतरी" पर मित्रो के भाव बढ़ोतरी/घटोतरी में ****

~सुनीता शर्मा~
शब्दों की डगर 
भावों का मनोहारी सफ़र 
स्वजनों की स्नेही भावमयी घर 
चलें सभी हाथ पकड़ बन निडर
15 January at 19:27 (बढ़ोतरी)

~नैनी ग्रोवर~ 
चलो 
कहीं दूर 
भावों के नगर 
शब्दों की नाव बना 
15 January at 19:43 (बढ़ोतरी)

~Bahukhandi Nautiyal Rameshwari~
भावों का शहर ।
हो मज़बूत शब्दों सजा ।
जाल हटा दो द्वेष के ।
रंग भर लो प्रेम स्नेह के ।
15 January at 21:42  (बढ़ोतरी)

~किरण आर्य~ 
भावो का खूबसूरत शहर
शब्दों से निर्मित सलोना घर
सजाये इसे नेह विश्वास से मिलकर
अहसासों को दिशा देता दिल का नगर 
16 January at 11:29  (बढ़ोतरी)

~Pushpa Tripathi~
भावों के धागे में गूंथते है 
शब्दों के महकते फूल नये 
अर्पित करती माला निराली 
शब्द सीढ़ी समूह 
~*~*~*~*~*~*~*~*~
ले चले हम शब्दों का कारवां 
भावों के साथ समूह गान 
'प्रतिबिम्बजी' का संदेशा नया 
मिलकर साथ खुशहाल
17 January at 22:15 ( घटोतरी / घटोतरी)






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