Sunday, February 3, 2013

संस्कृति - परिवर्तन

आज के शब्द 'संस्कृति' और 'परिवर्तन' --- जिनका प्रयोग एक भाव 'प्रश्न' में और एक शब्द भाव 'उत्तर' में [मुख्य शर्त- अगर घटोतरी में प्रश्न है तो उत्तर बढ़ोतरी में होना चाहिए और अगर प्रश्न बढ़ोतरी में है तो उत्तर घटोतरी में ]

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

देखता हूँ
चहुँ ओर ही
संस्कृति से होता खिलवाड़
आखिर किस ओर चले हम ?
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परिवर्तन संसार का नियम है
पाश्चात्य से करते होड़
भूले अपने संस्कार
अपनी संस्कृति


किरण आर्य 
बिसूरे संस्कृति साथ उसका अब ना भाय
दूजे की अपनाय अपनी खोती जाय
श्रेय ले गई आधुनिकता निगोड़ी
संस्कृति क्यों नीर बहाय ?
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परिवर्तन जीवन चक्र चलाय
वक़्त नदिया सा बहता जाय
संस्कृति अपनी देकर सीख जीना सिखलाय
संस्कार सखा कहलाय जीवन को सत्कर्मी बना

सुनीता शर्मा
उन्नत संस्कारों से भरी हमारी देश की संस्कृति 
जीवन पर्यंत जो साथ देती सभी का
हमारी आधारशिला है जिससे जग में
विदेशी संस्कृति फिर क्यूँ प्रिय ?
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देश की बढती दुर्गति देख
फिर से अंतर्मन के दीप जलाएं
छोड़ दें परायी विदेशी संस्कृति का मोह
अपनी मानसिकता-व्यवहार में परिवर्तन लायें देश बचाएँ


Pushpa Tripathi 
संस्कृति अपनी
क्यूँ हुई दूर ?
क्यों करते इसे पराया
इसी में छिपी, धरोहर हमारी ..
~~~~~~~~~~~~~~~
परिवर्तन जीवन का परिचालक है
चलना साथ है आवश्यक
अंधाधुंध ना दौड़
मन समझ ......


Virendra Sinha Ajnabi .
संस्कृति कैसे रह सकेगी सुरक्षित हमारी?
प्रतिदिन हो रहे प्रहार इसपे,
उछ्रंखलता उद्दंडता हैं हावी,
चारो और लाचारी.
.............................................
लाओ क्रांतिकारी परिवर्तन,
कड़ा करना होगा अनुशासन,
प्रतिबंधित करना होगा नैतिक प्रदूषण,
तभी संभव होगा संस्कृति का संरक्षण


डॉ. सरोज गुप्ता 
संस्कृति के प्रहरी
सोच उन्हें बड़ी गहरी
मांगे युवा परम्पराओं में क्रांति
क्या मिल पायेगी शान्ति,मिटेगी भ्रान्ति ?
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व्यवहारिक गुणवत्ता से बढ़े सांस्कृतिक संस्कार
परम्पराएं दिलाएं विश्वास को आधार
अंधविश्वास का मिटाओ भूत
परिवर्तन सहजे प्रीत !


भगवान सिंह जयाड़ा 
क्या संस्कृति ,
समय के साथ ,
बदलती रहती है सदा ,
क्यों बदल जाते है हम ,
**********************
शायद परिवर्तन ,
समय का दस्तूर ,
जो परिवर्तन शील सदा ,
अपने साथ बदलता सब कुछ


कुसुम शर्मा 
कहाँ है?
हमारी अपनी संस्कृति
कहाँ गए हमारे संस्कार ?
क्यों करते हम सबका त्रिस्कार?
..........................
पश्चमी देशो में जाने पर
परिवर्तन की सूली चढ़े
खो गई संस्कृति
छूटे संस्कार ।

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
जाने कब छुट गयी ।
हथेलियों से, संस्कृति की डोर ।
विदेशी जामा ओढ़े, उडे किस ओर ।
सोने की चिड़िया अब सुर काँव काँव ।
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शहर की भीड़ में, बिसरे सब गाँव ।
परिवर्तन की आंधी, ले उड़ी ज़ज्बात ।
जड़ काट, खिले कलयुगी पात ।
परिवर्तन यही, संस्कृति अपनाओ ।।


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