Friday, February 1, 2013

शोर


 शोर ' शब्द का प्रयोग करते हुए मित्रो के दोनों भाव [ घटोतरी और बढ़ोतरी]  में 


Pushpa Tripathi .

शोर न मचा ऐ काले कौए
मत कर सिर में दर्द
बोल नहीं लुभावने तेरे
तू काला कुरूप l
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रोज मचाता तांडव शहर
वाहनों की अँधा धुंध शहर
आबो हवा में बिगड़ता है, शहर
शोर कोलाहल में बसता, बड़ा ये शहर


किरण आर्य 


शोर ह्रदय का क्यों व्यथित है करे

राह पाने को बेचैन भटकता सा
जैसे मृग कस्तूरी आस लिए
विकल रहे दिन रैन
.............
शोर ये शोर
यहाँ वहां चहुँ ओर
दिलो का आक्रोश राह ढूंढें
मृगतृष्णा की भटकन ही हाथ लगे


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 


इक गुमसुम सा शोर ।

दूजा शोर मचाता उदंड शोर ।
नगर, गली, शहर, चौराहों में शोर ।
दरार है शोर की, अब दीवारों में ।।
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यूँ अंतर्मन, परेशान, सभी शोर से है ।
कहीं भ्रस्टाचार का, कहीं बलात्कार का ।
बस अब हल, क्रान्ति चाहिए ।
मुझे अब शांति चाहिए ।।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल


भीड़ में खो गया

कहता सुनता रहा
फैलता रहा
शोर
.....
शोर
यहाँ वहाँ
मन में भी
क्या सुन सके आप



Pushpa Tripathi 


'मै' प्रवृति रहता, मन के भीतर
कई उत्सुकता 'इच्छा' है नाम
करता चुपचाप फुंकार विलाप
कभी मचाता शोर .....
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शोर नहीं
अब आवाज़ नहीं
क्रांतिकारियों की भीड़ नहीं
सरकार तक पहुंचती बात नहीं



प्रभा मित्तल 

शोर
हर तरफ
मचा है कोलाहल,
बढ़ाता है ध्वनि प्रदूषण।
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मन की दबी आवाजें भी
मौन प्रदूषण सी मानो
बढ़ा रही हैं
शोर।



कुसुम शर्मा 


नए साल का शोर है, नई नहीं बात।

महज नाम ही बदलते, कब बदले हालात॥
वही दिसंबर-जनवरी, वही फरवरी-मार्च
नहीं फेंकती रोशनी, बिगड़ी टार्च॥
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शोर से भला
मेरे शहर में सन्नाटा
जहाँ कम-से-कम फुर्सत
चार पल तो मिल जाया करते।।



डॉ. सरोज गुप्ता

शोर मेरे भीतर
समुन्द्र में जैसे पानी
कभी भी ज्वालामुखी बन फूटेगा
कर देगा जल थल पानी -पानी !
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मन की परतें न खोल
चुप्पी साधे छुपा चोर
क्यों सखी चितचोर
नहीं, शोर !


नूतन डिमरी गैरोला 

चोरों ने
मुखोटे गढ़े थे
शोर मचाते हुए वो
बन गये समाज के परवरदिगार|
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एक निश्छल अंजान आदमी बेबुनियाद
ठहराया गया चोर जभी
चोर मचाये शोर
चोर चोर |




इस पोस्ट में सभी भाव पूर्व में प्रकशित हो चुके है फेसबुक के समूह " सीढ़ी - भावों की " https://www.facebook.com/groups/seedhi/

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर सबके भाव हार्दिक बधाई

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शुक्रिया आपकी टिप्पणी व् सराहना के लिए !!!