( अर्पण शब्द का प्रयोग करते हुए मित्रो/सदस्यों के भाव घटोतरी बढ़ोतरी में )
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
तेरा तुझको ही करता अर्पण
फिर भी मांगता तुझसे
लेन देन करता
मतलबी इंसान
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आओ जाने
समर्पण हो कैसा
प्रेम में त्याग जैसा
रण भूमि में शहीद जैसा
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
ये माँ का जीवन ।
समग्र जीवन संतान को अर्पण ।
अपनी ही छवि देखे उनमे वो ।
उसकी संतान ही, हो उसका ज्यूँ दर्पण ।।
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दुर्भाग्य ये कैसा, मिटा दर्पण माँ का ।
फ़िल्मी किरदार दीवारों पर सजा रहे ।
माँ मेरा जीवन अर्पण तुझे।
मैं माँ का जीवन ।।
भगवान सिंह जयाड़ा
अर्पण क्या करू प्रभु तुमको
तुम्हारे लायक कुछ नहीं
ध्यान तुम्हारा नित
करता हूँ
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अर्पण तुमको
यह भक्ति मेरी
दया सदा बनाए रखना
बिचलित ना पथ से करना
किरण आर्य
अर्पण ये तन मन चरणों में तेरे
हे मनमोहना ईश् तुम्ही हो मेरे
तुझ बिन अधूरे साँझ सवेरे
तुम्ही सखा बंधू मेरे
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मुस्काते मनमोहना तुम्ही
अंखियों में आन बसे
अहसासों से सजी रूह तोरे
अर्पण हर भाव हृदय का मोरे
सुनीता शर्मा
मन से हर भाव किया अर्पण
पूर्ण न हो पाया स्वप्न
अधूरा रहा शायद समर्पण
श्री साईं मेरे
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सुन प्यारी धरती माँ
तेरे वात्सल्य पर समर्पित हम
अत्याचारी चिन्तन न बढ़ जाएँ अब
जीवन अर्पण कर देंगे तेरी सुरक्षा में .!....
इस पोस्ट में सभी भाव पूर्व में प्रकशित हो चुके है फेसबुक के समूह " सीढ़ी - भावों की "
https://www.facebook.com/groups/seedhi/
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