Sunday, January 20, 2013

जिंदगी

( 'जिंदगी' शब्द का प्रयोग करते हुए 'बढ़ोतरी' व् 'घटोतरी'  रूप में  सदस्यों के भाव  समूह सीढी -भावो की में )


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
जिंदगी 
एक सत्य 
फिर भी प्रश्न 
कैसे इसे जिया जाए 
-------------------
मैं उत्तर हर प्रश्न का 
मैं एक आस हूँ 
सब मुझे कोसते
कहते जिंदगी

Mahendra Singh Rana 

क्या
ए जिन्दगी
तुझसे मिल के
ये दिन देखना था?
..........................
ढूढ़ी उसमे जब अपनी जिन्दगी
दगा वो मुझे मेरा
यार बार-बार
दे गया।


सुनीता शर्मा 

जिन्दगी 
अदभुत नदी 
निरंतरता से बहती 
बनके सुख दुःख धारा 
_________________

दुखो के अपार समुंद्र में 
खुशियों के मोती छिपे 
उलझन हो कितने 
सुलझाती जिन्दगी 

प्रभा मित्तल 

जिन्दगी
आड़ी तिरछी
पगडण्डी से होकर
यौं ही गुज़रती रही।
......................
हार नहीं मानी कभी
मैंने हँसकर गुज़ारी 
साँवली सलोनी
जिन्दगी।

संगीता संजय डबराल 

जिंदगी
नित्य संघर्षरत,
तलाश ख्वाहिशों की 
भटकते दर-बदर हम,
===================
सकून कही हमें मिला नहीं, 
ढूढ़ते ही रह गये,
तलाश जारी है 
अभी जिंदगी

Pushpa Tripathi 

जिंदगी 
एक शब्द 
एक छोर तक 
भावार्थ रूप अर्थ समझती 
~*~*~*~*~*~*~*~*~
जिंदगी है, एक भिनसार उजाला 
घटता दोपहर, शाम अँधेरा 
घूमता समय चक्र 
निरंतर सदा .

आशीष नैथाऩी 'सलिल' 

जिन्दगी,
रह गयी
मोहताज साँसों की
कब आये, कब नहीं ।
-------------------
तेरी सोहबत ने जिन्दगी,
कैसा किया असर
भुला बैठे
उन्हें ।

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 

ज़िन्दगी किस गली बसर हो तुम ।
रोज पता खोजते हैं हम ।
न भीड़, न तन्हाई ।
क्यूँ नाराजी जताई ?
-----------------
ज़िन्दगी, चाहा तुझे ।
बेजान हूँ, दूरियां बनायीं ।
साँसों को मेरी, ज़रुरत तेरी।
देख, हुजूम खड़ा मय्यत को मेरी ।

श्री प्रकाश डिमरी

तू कहाँ खोयी 
जागी है या सोयी 
पत्थरों के अजनबी शहर में 
सहमी सहमी सांस लेती है जिंदगी 
--------- 
अबोध बचपन जैसी अनजान सी 
करती कभी हैरान सी 
कभी खिलखिलाती मुस्कुराती 
रुलाती जिंदगी

[शुक्रिया मित्रो ]
इस पोस्ट में सभी भाव पूर्व में प्रकशित हो चुके है फेसबुक के समूह " सीढ़ी - भावों की " https://www.facebook.com/groups/seedhi/

1 comment:

  1. भावों को सजाने का सुंदर प्रसास प्रतिबिंब जी !!
    सभी साथियों ने सुंदर भाव ब्यक्त किए है ॥

    प्रभा मित्तल-

    "जिन्दगी
    आड़ी तिरछी
    पगडण्डी से होकर
    यौं ही गुज़रती रही।
    ......................
    हार नहीं मानी कभी
    मैंने हँसकर गुज़ारी
    साँवली सलोनी
    जिन्दगी।"

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